नैनीताल। जिला एवं सत्र न्यायाधीश सुबीर कुमार की अदालत ने विवाहिता के उत्पीड़न के मामले में पति को सजा सुनाई है। न्यायालय ने दहेज की मांग को लेकर पति द्वारा पत्नी को परेशान करने, उसके साथ मारपीट करने साथ ही बच्चे न होने पर पत्नी का उत्पीड़न करने व उसे आत्म हत्या को उकसाने का दोषी पाया है। आरोपी पति को सात वर्ष के कठोर कारावास व दहेज की मांग पूरी करने के मामले में दोषी पाते हुए तीन वर्ष का कठोर कारावास की सजा सुनाई है।
न्यायालय सूत्रों के मुताबिक संजय कुमार निवासी ग्राम चारखेत, मल्लीताल, नैनीताल को अपनी पत्नी की आत्महत्या के दुष्प्रेरण के अपराध में दोषी पाते हुए सजायाफ्ती वारण्ट बनाकर जेल भिजवाया। अभियोजन के अनुसार 05.01.2020 को मृतका श्रीमती मीता देवी के भाई मनीष पुत्र स्व० हरीश चन्द्र निवासी जैखोला तल्लीताल, भीमंताल नैनीताल ने थाना मल्लीताल में रिपोर्ट दर्ज करायी कि मेरी की बहिन मीता देवी उम्र 28 वर्ष की शादी 07.03.2014 को अभियुक्त संजय कुमार पुत्र आनन्द कुमार निवासी चारखेत नैनीताल के साथ सम्पन्न करी थी। शादी के समय दहेज में सोने के आभूषण मांगटीका, नथ, अल्मारी, फर्नीचर देकर सम्पन्न की थी, लेकिन शादी के दो साल के बाद से ही मीता का पति/अभियुक्त संजय कुमार व परिवार के सदस्य उसे अतिरिक्त दहेज में मोटरसाईकिल, कार व पैसे की मांग कर आये दिन मारपीट करते थे तथा मृतका को अपने मायके भी फोन नहीं करने देते थे। यही नहीं मृतका से शादी के 6 वर्ष तक कोई संतान उत्पन्न ना होने के कारण उसके विरुद्ध अपशब्द प्रयोग कर अत्यधिक परेशान कर अपमानित करते थे। 04.01.2020 मृतका मीता के ससुराल वालों ने रिपोर्टकर्ता मनीष व उसकी माता को फोन किया मीता का स्वास्थ्य खराब है, आप नैनीताल आओ. सूचना पर रिपोर्टकर्ता व उसके परिवार वाले मीता के ससुराल चारखेत पहुंचे तो घर पर कोई नहीं मिला तथा संजय कुमार के पड़ोसी ने बताया कि मीता की लाश सडियाताल कृत्रिम झील पर मिली है, जो ससुराल से आधा किसी० थी. मौके पर रिपोर्टकर्ता व उसके परिवार वाले गये, मौके पर पंचायतनामे की कार्यवाही हुई। उका मामले में पुलिस द्वारा विवेचना पूर्ण करने के उपरान्त अभियुक्त संजय के विरुद्ध धारा 498ए, 304बी मा०द०स० एवं 3/4 डी०पी०एक्ट के अन्तर्गत आरोप पत्र न्यायालय पेश किया।
मामले में अभियोजन की ओर से जिला शासकीय अधिवक्ता फौजदारी सुशील कुमार शर्मा द्वारा पैरवी की गयी। अभियोजन के तथ्यों को साबित करने हेतु मामले में कुल 11 गवाह पेश किये गये।
न्यायालय जिला एवं सत्र न्यायाधीश नैनीताल सुबीर कुमार द्वारा आज अभियुक्त संजय कुमार को अपनी पत्नी के आत्महत्या के दुष्प्ररेण में दोषी पाते हुए धारा-306 भा०द०सं० के अन्तर्गत 7 वर्ष का कठोर कारावास व 10 हजार रू० अर्थदण्ड, अर्थदण्ड अदा ना करने पर 6 माह का अतिरिक्त कारावास की सजा सुनाते हुए धारा 498ए भा०द०सं० के तहत भी 3 वर्ष का कठोर करावास के बाथ-साथ 5 हजार रू0 के अर्थदण्ड की सजा सुनायी है, अर्थदण्ड जमा ना करने पर 3 माह के तिरिक्त कारावास की सजा सुनाकर अभियुक्त को हिरासत में लेकर सजा भुगतने हेतु जेल भेजा है। न्यायालय द्वारा अपने निर्णय में मृतका की माता को भी उत्तराखण्ड अपराध से पीड़ित सहायता बजना-2013 के तहत सहायता धनराशि प्रदान करवाने बावत जिला विधिक सेवा प्राधिकरण नैनीताल भी निर्देशित किया है।
सजा के प्रश्न पर राज्य की ओर विद्वान जिला शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) तथा अभियुक्त को सुना गया एवं पत्रावली का परिशीलन किया गया। विद्वान जिला शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) सुशील कुमार शर्मा की ओर से तर्क प्रस्तुत किया गया है कि अभियुक्त द्वारा अपनी 29 वर्षीय पत्नी को प्रताड़ित कर उसे आत्महत्या करने के लिए दुष्प्रेरित किया गया, साथ ही अभियुक्त द्वारा अपनी पत्नी के साथ क्रूरता की गयी है। यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया है कि मृतका के माता-पिता द्वारा अपनी पुत्री मीता को एम.ए. तक शिक्षा दिलाई गई थी, ताकि उसका विवाह अच्छे परिवार में हो सके, परन्तु अभियुक्त द्वारा संतान ना होने के कारण अपनी पत्नी को बांझ कहकर उसका अपमान किया गया एवं उसके साथ क्रूरता कारित की गयी जिससे बाध्य होकर मृतका द्वारा आत्महत्या करने का मार्ग चुना गया। अतः राज्य की ओर से प्रार्थना की गयी है कि
अभियुक्त को कठोर से कठोर दण्ड दिये जाने की प्रार्थना की गयी।न्यायालय ने कहा कि अभियुक्त द्वारा न तो अपनी पत्नी का कोई इलाज कराया गया है, उसे किसी अस्पताल में विशेषज्ञ चिकित्सक को दिखाया गया हो। किसी महिला की संतान ना होने पर उसे बांझ कहकर उसका अपमान एवं तिरस्कार करना वस्तुतः महिला को ऐसे अपराध करने के लिए दण्डित करना है जिसके लिए यह उत्तरदायी नहीं है। 103 दाण्डिक न्याय शास्त्र के अन्तर्गत किसी व्यक्ति को अपराध का दण्ड देते समय न्यायालय अपराध की गंभीरता तथा अपराध करने में अभियुक्त की भूमिका को ध्यान में रखता है। साथ ही न्यायालय के लिए यह देखना भी आवश्यक है कि अपराध का दण्ड ऐसा हो जिससे पीड़ित पक्ष को न्याय भी मिल सके तथा अभियुक्त इतने लम्बे समय तक अभिरक्षा में रहे ताकि उसे पश्चाताप का समुचित अवसर भी मिल सके। दाण्डिक न्याय शास्त्र के अनुसार, कारागार किसी व्यक्ति को निरुद्ध करने के लिए ही नहीं है बल्कि कारागार में रखकर अभियुक्त के आचरण को सुधारा जाता है ताकि यह कारागार से रिहा होने के उपरान्त समाज के लिए एक उपयोगी व्यक्ति सिद्ध हो सके।