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विशेषज्ञों के मुताबिक अमेरिका और चीन इस समय आर्टिफिशियल के क्षेत्र में दो अग्रणी देश हैं, लेकिन वे अलग-अलग प्रतिमानों के आधार पर इस तकनीक को विकसित करने में जुटे हुए हैँ। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) के प्रतिमान तय करने के लिए पश्चिमी देशों की एक महत्त्वपूर्ण बैठक लंदन में शुरू हो गई है। इस बैठक से ठीक पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एआई कंपनियों के लिए तय किए कायदों का एक आदेश अपने देश में जारी किया। लंदन की बैठक में कुल 27 सरकारों के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। गौरतलब है कि विभिन्न क्षेत्रों में एआई के बढ़ते इस्तेमाल के साथ जहां इसकी अपार संभावनाओं से दुनिया परिचित हो रही है, वहीं इस तकनीक पर से मानवीय नियंत्रण खत्म होने की आशंका भी पैदा हुई है।

इसके अलावा इससे इंसानी नौकरियों के लिए खतरा पैदा होने और साइबर हमलों के अधिक खतरनाक जैसे अंदेशे भी गहराए हैँ। लंदन की बैठक ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की पहल पर हो रही है। पिछले हफ्ते सुनक ने जोर दिया था कि उनका लक्ष्य सुरक्षा के मामले पर एक अंतरराष्ट्रीय समझ को विकसित करना है। ह्वाइट व्हाइट हाउस ने एआई के इस्तेमाल केलिए जो सुरक्षा मानक तय किए हैं, उसके तहत कंपनियों को अपने कुछ खास तरह के सिस्टम सरकारी समीक्षा के लिए जमा करने होंगे।

इसे निजी क्षेत्र में सरकार का दखल माना गया है, लेकिन इसे सामाजिक हित में जरूरी भी समझा जा रहा है। इस बैठक से कुछ रोज पहले ही चीन ने एआई संचालन के लिए अपना दस्तावेज जारी किया था। विशेषज्ञों के मुताबिक अमेरिका और चीन इस समय एआई के क्षेत्र में दो अग्रणी देश हैं, लेकिन वे अलग-अलग प्रतिमानों के आधार पर इस तकनीक को विकसित करने में जुटे हुए हैँ। यह अच्छी बात है कि लंदन की बैठक में चीन को भी आमंत्रित किया गया है। मगर इस समय पश्चिम और चीन के बीच जिस तरह की होड़ चल रही है, उसमें उनके बीच किसी भी मुद्दे पर सहमति बनना कठिन हो गया है। इसलिए ये आशंका गहरा गई है कि एआई संचालन के दो प्रतिमानों के बीच दुनिया बंट सकती है। ऐसा हुआ, तो इंटरनेट का भी बंटवारा भी हो सकता है। इसीलिए लंदन बैठक के नतीजों पर सबकी नजर है। वहां संचालन नियमों पर सहमति बने, यह सबकी कामना है।

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