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नैनीताल। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने डकैती, हत्या व लाश को छिपाने के मामले में अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश रुद्रप्रयाग से दो अभियुक्तों को मिली फांसी की सजा को रद्द कर दिया है। हाईकोर्ट ने निचली अदालतों को नसीहत दी है कि आपराधिक मुकदमे में संदेह चाहे कितना भी मजबूत क्यों न हो, उसे सबूत की जगह लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

 

मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। जिसमेंं हाईकोर्ट ने कहा कि हो सकता है और होना चाहिए के बीच की मानसिक दूरी ”अस्पष्ट अनुमानों” व ”निश्चित निष्कर्षों” पर गौर करना चाहिए। किसी आपराधिक मामले में यह सुनिश्चित करना न्यायालय का कर्तव्य है कि मात्र अनुमान या संदेह कानूनी सबूत की जगह न लें। किसी अभियुक्त को दोषी ठहराने से पहले सच्चा हो सकता है और सच्चा होना चाहिए के बीच की बड़ी दूरी को अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत स्पष्ट ठोस और निर्विवाद साक्ष्य के माध्यम से कवर किया जाना चाहिए।

अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश रुद्रप्रयाग ने 2 दिसंबर व 4 दिसंबर 2018 को लूट व हत्या के दो आरोपियों सत्येश कुमार उर्फ सोनू व मुकेश थपलियाल को फांसी की सजा सुनाई थी। अपने आदेश की पुष्टि कराने के लिए निचली अदालत ने इसे उच्च न्यायालय में भेजा था।

पूर्व के कोर्ट ने 8 मई को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट ने 6 अगस्त को निर्णय दिया। कोर्ट ने रिकॉर्ड पर मौजूद सभी मौखिक और साक्ष्यों की प्रकृति और गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए आईपीसी की धारा 302, 34, 392 आईपीसी और धारा 201 की धारा पर अपीलकर्ताओं को मिली सजा को रद्द कर उन्हें तुरंत रिहा करने के आदेश दिए हैं।
अभियुक्तों के खिलाफ ग्राम लिस्वालता पट्टी कोट बंगर रुद्रप्रयाग निवासी महिला सरोजनी देवी के घर में डकैती करने, सरोजनी देवी की हत्या करने व लाश घर के पीछे छिपाने का आरोप था। इस घटना का कोई चश्मदीद गवाह नहीं था, लेकिन लूटे गए कुछ जेवरात व रुपये आरोपियों के पास मिले थे। मृतका के बेटे विजय रावत ने घटना की प्राथमिकी 6 अप्रैल 2017 को पट्टी पटवारी के समक्ष दर्ज कराई थी। विजय रावत मुंबई में रहता था।

उसे 4 अप्रैल को अपनी मां के गायब होने की सूचना मिली थी। इसके बाद वह गांव आया। उसके पिता त्रिलोक सिंह और संजय युगांडा में थे। निचली अदालत से मिली सजा के खिलाफ सत्येश कुमार उर्फ सोनू व मुकेश थपलियाल ने हाईकोर्ट में अपील भी दायर की थी। इस मामले में हाईकोर्ट ने गवाहों के बयानों को गंभीर संदेह पैदा करने वाला बताया और अपीलकर्ताओं द्वारा ही महिला की हत्या की गई हो ऐसा विश्वास नहीं होना पाते हुए कहा कि गंभीर संदेह कभी प्रमाण का स्थान नहीं ले सकता।

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