ख़बर शेयर करें -

चुनावों की वैधता इससे तय होती है कि उसमें विकल्प के रूप में जनता के सामने विभिन्न दल मौजूद हों और सभी दलों को चुनाव के स्वतंत्र एवं निष्पक्ष होने का भरोसा हो। जबकि बांग्लादेश में विपक्ष चुनाव का बहिष्कार कर रहा है। बांग्लादेश में रविवार यानी सात जनवरी को आम चुनाव के लिए मतदान होगा। मगर यह ऐसा चुनाव है, जिसका नतीजा लगभग पहले से तय है। कारण यह है कि देश की मुख्य विपक्षी पार्टियां चुनाव का बहिष्कार कर रही हैं। उन पार्टियों के कई नेता जेल में हैं। शेख हसीना की अवामी लीग 2009 में सत्ता में आई थी। 2014 के चुनाव में वह फिर जीती, लेकिन तब विपक्ष ने उस पर बड़े पैमाने पर धांधली करने का आरोप लगाया। 2019 में विपक्षी दलों- खासकर बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएऩपी) ने मांग की कि पहले की तरह तटस्थ चुनाव कराने की परिपाटी फिर से अपनाई जाए।

प्रधानमंत्री शेख हसीना इसके लिए राजी नहीं हुईं, तो बीएनपी ने चुनाव का बहिष्कार किया। वही कहानी 2024 में दोहराई जा रही है। लेकिन क्या इसे लोकतंत्र कहा जाएगा? चुनावों की वैधता इससे तय होती है कि उसमें विकल्प के रूप में जनता के सामने विभिन्न दल मौजूद हों और सभी दलों को चुनाव के स्वतंत्र एवं निष्पक्ष होने का भरोसा हो। जबकि बीएनपी और उसके सहयोगी दलों का कहना है कि उन्हें यह यकीन नहीं है कि शेख़ हसीना स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराएंगी। यह आरोप भी है कि शेख़ हसीना पिछले कुछ सालों में निरंकुश हो गई हैं। यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र के दूतों के एक समूह ने भी बीते नवंबर में कहा था कि बांग्लादेश में न्यायिक सिस्टम का हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके तहत आलोचक पत्रकारों, मानवाधिकार और सामाजिक कार्यकर्ताओं आदि को निशाना बनाया गया है।

समूह ने कहा कि देश में न्यायपालिका की स्वतंत्रता कम हुई है और मूलभूत मानवाधिकारों का हनन बढ़ा है। शेख हसीना और उनकी पार्टी ऐसे इल्जामों को सिरे से खारिज करती हैं। पार्टी के इस दावे में दम है कि अपने 15 साल के शासनकाल में उसने बांग्लादेश की आर्थिक सूरत बदल दी है। साथ ही उसने समाज में कट्टरपंथी गुटों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की है। मगर प्रश्न है कि अगर अवामी लीग को अपनी उपलब्धियों पर इतना भरोसा है, तो उसे विपक्ष को चुनाव में पराजित कर देने का यकीन क्यों नहीं है?

You cannot copy content of this page